जापान की ‘केई ईवी’ रणनीति का भारतीय बाजार पर सीधा असर
ब्रह्मास्त्र नई दिल्ली
दुनिया का आॅटोमोबाइल पावरहाउस जापान, इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के भविष्य के लिए एक ऐसी अनोखी और विशिष्ट रणनीति पर काम कर रहा है, जिसका सीधा और गहरा निहितार्थ भारत जैसे विशाल और मूल्य-संवेदनशील बाजार के लिए है। जबकि टेस्ला और यूरोपीय निमार्ता लंबी रेंज और बड़ी एसयूवी-शैली की ईवी पर दाँव लगा रहे हैं, जापान के प्रमुख कार निमार्ता—जिनमें भारत में सबसे अधिक बिकने वाली कारें बनाने वाली सुजुकी भी शामिल है—छोटी, किफायती और विशिष्ट ‘केई’ (ङी्र) श्रेणी की इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इस जापानी रणनीति का सबसे आकर्षक पहलू यह है कि यह कम विनिर्माण लागत और सरकारी प्रोत्साहनों के दम पर ईवी की कीमत को पेट्रोल इंजन वाली कारों के लगभग बराबर ला रही है, जो भारत जैसे देश के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है जहाँ कीमत ही सफलता की कुंजी है।
भारत और जापान के बीच भले ही आकार में बड़ा अंतर हो, लेकिन उनकी शहरी यातायात की भीड़, पार्किंग की समस्या और सबसे महत्वपूर्ण, छोटे, ईंधन-कुशल वाहनों के प्रति उपभोक्ताओं का गहरा प्रेम एक मजबूत समानता स्थापित करता है। जापान में केई कारें, जिनकी लंबाई और इंजन विस्थापन 660 सीसी से कम होती है, नए वाहनों की बिक्री में एक-तिहाई से अधिक का योगदान देती हैं, और इन पर कर भी कम लगता है। यह ठीक वैसी ही बाजार संरचना है, जिसका नेतृत्व भारत में मारुति सुजुकी अपने आॅल्टो, वैगनआर और सेलेरियो जैसे मॉडलों के साथ करती आई है। जापानी कार निमार्ता सुजुकी की अपनी घरेलू केई कार बाजार में गहरी विशेषज्ञता है, और यह विशेषज्ञता सीधे भारतीय बाजार में मारुति सुजुकी इंडिया के लिए बड़े पैमाने पर सस्ती ईवी उतारने का ब्लूप्रिंट बन सकती है। भारत में ईवी क्रांति की गति अब तक धीमी रही है, जिसका मुख्य कारण चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से ज्यादा प्रारंभिक खरीद लागत का अधिक होना है।
भारत में ईवी बाजार की वर्तमान अगुवाई टाटा मोटर्स द्वारा हो रही है, जिसने नेक्सन ईवी और टियागो ईवी जैसे मॉडलों के साथ सामर्थ्य का एक मानक स्थापित किया है। हालांकि, ये मॉडल अभी भी अपने पेट्रोल संस्करणों की तुलना में काफी महंगे हैं, जिसके चलते बड़े पैमाने पर उपभोक्ता वर्ग अभी भी ईवी की ओर मुड़ने से हिचकिचा रहा है। अगर सुजुकी जापान की ‘केई ईवी और कीमत समानता’ के फामूर्ले को भारत में दोहराने में सफल हो जाती है, जहाँ एक केई ईवी की लागत पेट्रोल केई कार से केवल थोड़ी ही अधिक है, तो यह भारतीय बाजार में बड़े पैमाने पर ईवी को अपनाने की प्रक्रिया को रातोंरात बदल सकती है। भारतीय उपभोक्ता हमेशा से ‘किफायती’ और ‘उपयोगितावादी’ वाहनों के प्रति आकर्षित रहे हैं, और छोटी, सस्ती ईवी इस मांग को पूरी तरह से पूरा कर सकती है, खासकर मेट्रो शहरों के भीतर आवागमन के लिए। जापान की इस रणनीति की प्रासंगिकता केवल कीमत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रेंज की चिंता और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की चुनौतियों को भी संबोधित करती है, जो भारत में एक बड़ी बाधा है। जापान में भी, ईवी को मुख्य रूप से दूसरी कार या शहर के भीतर आवागमन के लिए उपयोग किया जाता है, क्योंकि सार्वजनिक चार्जिंग नेटवर्क अभी भी शुरूआती चरण में है। केई ईवी, अपनी छोटी बैटरियों और सीमित रेंज के साथ, मुख्य रूप से शहरी उपयोग के लिए डिजाइन की गई हैं, जिससे उपभोक्ता इंटरसिटी यात्रा की अपेक्षाओं के बिना उन्हें खरीद सकते हैं।
